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दिल करता है कि बस

दिल करता है कि बस

दोस्तो, मेरा नाम समीर है। आज मैं आपको मेरे और मेरी गर्लफ्रेंड के कुछ सच्चे और गर्मागर्म संस्मरण बताने जा रहा हूँ।

कॉलेज में मेरी गर्लफ्रेंड बनी सोफिया। लड़की क्या थी बस ऐसा लगता था कि चुदाई के लिए ही बनो हो। गोल-गोल पुष्ट 38 इन्च के मम्मे, सुडौल भरे-भरे नितम्ब, जिन्हें देख कर दिल करता था कि अभी अपना लंड निकाल के रगड़ दो। हमारा प्यार होंठ चूसने से शुरू होकर मम्मे दबाने और जांघें सहलाने तक पहुँच चुका था मगर कोई जगह न मिलने के कारण हमें इतने में ही गुज़ारा करना पड़ता था। कभी कभी तो हम दोनों इतने गर्म हो जाते थे कि दिल करता था कि कार ही में कर डालूं। वो भी बहुत चुदासी हो जाती थी और "सी-सी" कर के मेरे लंड को रगड़ने लगती थी।

एक दिन मेरे घर में कोई नहीं था, तो मैंने सोचा कि क्यों न उसे अपने घर बुलाने का रिस्क उठाया जाये। सच में अब रहा नहीं जा रहा था। चूत तो उसकी भी गर्म थी तो उसने हामी भर दी। हम अपने दिमाग से नहीं अपनी टांगों के बीच से सोच रहे थे।

माँ के जाते ही मैंने फटाफट खाने पीने का सामान खरीदा, फिर से ब्रश किया, कंडोम्स तो थे ही जिन्हें मैं मुठ मारने के लिए रखता था। बहुत इंतज़ार के बाद वो आई। क्या लग रही थी ! उसने कपड़े ऐसे पहने थे कि उसका अंग-अंग पूरा उभर के दिख रहा था। मैंने उसे चूमा और अन्दर ले आया। दिल तो कर रहा था कि बस शुरू हो जाऊं मगर फोर्मलिटी भी तो निभानी थी. हमने कोल्ड-ड्रिंक पी और इधर उधर की बातें की। वो अपने घर में सहेलियों के साथ पिक्चर जाने का बहाना बना कर आई थी। मेरी माँ को डिनर के बाद ही आना था और अभी सिर्फ बारह ही बजे थे। अभी काफी समय था। उसने अपना दुपट्टा हटा कर एक तरफ़ रख दिया और उसके वो गदराये हुए उभार मेरी आँखों के सामने आ गए। अब मुझसे रहा नहीं गया और मैं उसके पास सोफे पर जाकर बैठ गया। पहले मैंने उसके गाल पर चूमा जो कि बाहर गर्मी की वजह से अभी तक लाल थे, यह किस पता नहीं कब एक गहन चुम्बन में बदल गया। हमारी ज़बानें आपस में लड़ने लगीं और हम बेतहाशा एक दूसरे के होंठ चूसने लगे। फिर मैं उसकी गर्दन की तरफ आया और उसे चूमने लगा। उसके छाती तक आते आते मेरा लंड पूरा खड़ा हो गया था।

उसकी सांसें बहुत तेज़ चल रही थीं। मैंने नीचे से उसकी कमीज़ के अन्दर हाथ डाला और उसकी चिकनी कमर से होता हुआ उसके ब्रा में कसे मम्मों पर पहुँच गया। दूसरा हाथ भी मैंने उसकी कमीज़ में डाला और उसकी पीठ सहलाने लगा। हमारी सांसें और तेज़ हो गई थीं।

"सोफिया...!"

"सी...हाँ"

"अपने कपड़े उतारो न..."

यह सुन कर उसने अपने दोनों हाथ ऊपर कर लिए। मैंने इशारा समझ कर फ़ौरन उसकी कमीज़ से हाथ निकले और उसे उतार दिया। मेरे सामने उसके बड़े-बड़े सख्त मम्मे थे। मैंने उसे अपनी ओर खींचा और उन्हें सहलाना और दबाना शुरू किया। मेरा लौड़ा उसकी जांघों से छू रहा था। मैंने पीछे से उसकी ब्रा के हुक खोल दिए।

"बड़े एक्सपर्ट हो इसे खोलने में !"

"जिस्म की प्यास सब सिखा देती है, जानेमन !" यह कह कर मैंने उसकी ब्रा उतार दी।

उफ़! ऐसे हसीन गदराये, रसीले स्तन तो मैंने ब्लू फिल्मों में ही देखे थे। मेरे हाथों मानो खज़ाना लग गया हो। मैंने पहले उन्हें सहलाया और झुक कर उसके गुलाबी, खड़े हुए चुचूक को मुँह में ले लिया।

'अआह !" उसके मुँह से निकला।

एक हाथ से मैं दूसरे स्तन को मसलने लगा। उसने एक हाथ बढ़ा कर मेरे लंड पर रख दिया। मैं पहले तीन-चार बार कार में उससे मुठ मरवा चुका था और उसे उंगली से चोद भी चुका था। उसने मेरे एलास्टिक वाले पजामे में हाथ डाल कर मेरा अकड़ा हुआ, गरमाया लंड पकड़ लिया। उसकी नर्म और गर्म हथेली में जाकर वो और उछलने लगा। मैं एक एक करके उसके मम्मे चूस रहा था। उन्हें छोड़ कर मैं उसे अपनी तरफ खींच के उसकी उभरी, भरी हुई गांड दबाने लगा। मैंने आगे से उसकी सलवार का नाड़ा खींच दिया और शलवार नीचे गिरी पर पूरी नहीं। अब मैंने एक हाथ पीछे से उसकी चड्डी में डाल दिया और एक हाथ से चड्डी के ऊपर से उसकी चूत मसलने लगा। वो ऐसे करहने लगी जैसे कि उसे दर्द हो रहा हो। वो मेरे लंड को और जोर से हिलाने लगी। मैं उसकी गांड जोर जोर से भींच रहा था और फिर अपने नंगा लंड उसके हाथ से छुड़ा कर आगे से उसकी गीली चड्डी पर रगड़ने लगा। उसको थोड़ा सा आगे झुका कर मैंने अपनी बीच की ऊँगली पीछे से उसकी चूत पे रख दी। बिल्कुल गीली और गर्म थी साली।

" सी...आआआ.... सब कुछ यहीं पर करोगे क्या?"

मैं जानबूझ कर चाह रहा था कि एक बार मैं झड़ जाऊं क्योंकि फिर चुदाई देर तक कर सकता हूँ। इतनी उत्तेज़ना में अगर उसकी चूत में डालता तो फ़ौरन झड़ जाता।

"क्यों? बहुत खुजली हो रही है?" मैंने छेड़ते हुए पूछा।

"मत पूछो... ! दिल करता है कि बस..."

"बस क्या?"

जवाब में उसने मेरे लंड को पकड़ लिया और अपनी चूत की तरफ खींचने लगी। मैंने आगे से उसकी चड्डी हटाई और अपना मोटा, गरम सुपारा उसकी चूत के मुँह पर रख दिया और रगड़ने लगा। इससे उसकी भग्नासा भी रगड़ खाने लगी। मैंने एक झटके में अपनी टी-शर्ट उतारी और उसकी गांड पकड़ के अपनी ओर खींचा और ऊपर से लंड रगड़ के गीली चूत पर घिसने लगा। उसके नंगे मम्मे मेरी नंगी छाती से दब रहे थे। मेरा लंड उसकी चड्डी में था। मेरे पूर्व-स्राव और उसकी चूत के रस ने चड्डी को आगे से बिलकुल भिगो दिया था। मेरे लंड पर उसकी चड्डी का दबाव भी पड़ रहा था। मैंने उसको धीरे-धीरे पीछे धक्का देते हुए दीवार के सहारे लगा दिया। उसे दीवार ठंडी तो ज़रूर लगी होगी मगर वो वासना में इतनी खोई थी कि उसने परवाह नहीं की। मैंने उसे दीवार के सहारे लगा कर उसकी गांड पकड़ के उसी चूत रगड़ाई शुरू कर दी।

"हाँ और जोर से...कितने दिन से प्यासी हूँ मैं तेरा गरम लंड यहाँ लगवाने को !"

"ले मेरी जान... इसके बाद अन्दर डाल के खुजली भी दूर करूँगा।"

हम दोनों इतने गरम हो चुके थी कि जैसे ही हमने अपनी ज़बानें एक दूसरे से लगाई, मेरे लंड ने ज़ोरदार पिचकारी छोड़ दी। ढेर सारा गरमागर्म, गाढ़े पानी ने उसकी चूत और चड्डी पूरी तरह भिगो दी। मेरे पानी की गर्मी से उसकी चूत ने भी अपना पानी छोड़ दिया। मज़े के कारण हम दोनों की आँखें बंद हो गईं और हम दोनों पता नहीं कितनी देर तक ऐसे ही खड़े रहे।
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